Watve Wadi Mitra Mandal

अभंग


ऐन दुपारी, यमुनातीरी, खोडी कुणी काढली
बाई माझी करंगळी मोडली
जळी वाकुन मी घट भरताना
कुठुन अचानक आला कान्हा
गुपचुप येऊनी पाठीमागुनी, माझी वेणी ओढली

समोर ठाके उभा आडवा
हातच धरला माझा उजवा
मीही चिडले, इरेस पडले, वनमाला तोडली

झटापटीत त्या कुठल्या वेळी
करंगळी हो निळसर काळी
का हृषिकेशी मम देहाशी निजकांती जोडली
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अवघे गर्जे पंढरपूर
चालला नामाचा गजर
टाळघोष कानी येती
ध्यानी विठ्ठलाची मूर्ती
पांडुरंगी नाहले हो
चंद्रभागा नीर
इडापिडा टळुनि जाती
देहाला या लाभे मुक्ती
नामरंगी रंगले हो
संतांचे माहेर
देव दिसे ठाई ठाई
भक् लीन भक्तापाई
सुखालागी आला या हो
आनंदाचा पूर
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तारीफ तेरी निकली है दिल से आयी है लव बनके कवाली
शिरडी वाले सांई बाबा आया है तेरे दर पे सवाली
शिरडी वाले सांई बाबा आया है तेरे...दर पे सवाली
लव पे दुआएँ आँखो में आंसू दिल में उम्मीदें पर झोली खाली
शिरडी वाले सांई बाबा आया है तेरे दर पे सवाली
दर पे सवाली आया दर पे सवाली, शिरडी वाले सांई बाबा
आया है तेरे दर पे सवाली मेरे सांई देवा तेरे सब नाम लेवा
मेरे सांई देवा तेरे सब नाम लेवा खुदा इनसान सारे सभी, तुझको हैं प्यारे
सुने फरियाद सबकी, तुझे है याद सबकी बड़ा या कोई छोटा, नहीं मायूस लूटा
अमीरों का सहारा, गरीबों का गुजारा तेरी रहमत का किस्सा ब्यान अकबर करे क्या
दो दिन की दुनिया, दुनिया है गुलशन सब फूल कांटे, तू सब का माली
शिरडी वाले सांई बाबा आया है तेरे दर पे सवाली
खुदा की शान तुझमें दिखें भगवान तुझमें

दिखें भगवान तुझमें...तुझे सब मानते है
तेरा घर जानते है चले आते है दौड़े
जो खुश किस्मत है थोड़े ये हर राही की मन्जिल
ये हर कश्ती का साहिल जिसे सब ने निकाला
उसे तूने सम्भाला जिसे सबने निकाला उसे तूने सम्भाला
तू बिछड़ों को मिलायेबुझे दीपक जलाये
बुझे दीपक जलाये ये गम की रातें रातें ये काली
इनको बनादे ईद और दीवाली शिरडी वाले सांई बाबा
आया है तेरे दर पे सवाली लव पे दुआएँ आँखो में आंसू
दिल में उम्मीदें पर झोली खाली शिरडी वाले सांई बाबा
आया है तेरे दर पे सवाली
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माझे माहेर पंढरी
आहे भीवरेच्या तीरी ॥१॥
बाप आणि आई
माझी विठ्ठल रखुमाई ॥२॥
पुंडलीक राहे बंधू
त्याची ख्याती काय सांगू ॥३॥
माझी बहीण चंद्रभागा
करितसे पाप भंगा ॥४॥
एका जनार्दनी शरण
करी माहेरची आठवण ॥५॥
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रूप पाहतां लोचनीं सुख जालें वो साजणी ॥१॥
तो हा विठ्ठल बरवा तो हा माधव बरवा ॥२॥
बहुतां सुकृतांची जोडी म्हणुनि विठ्ठलीं आवडी ॥३॥
सर्व सुखाचें आगर बाप रखुमादेवीवरू ॥४॥
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सुंदर तें ध्यान उभे विटेवरी
कर कटावरी ठेवोनियां ॥१॥
तुळसी हार गळां कांसे पितांबर
आवडे निरंतर तें चि रूप ॥२॥
मकरकुंडलें तळपती श्रवणीं
कंठीं कौस्तुभमणि विराजित ॥३॥
तुका म्हणे माझें हें चि सर्व सुख
पाहीन श्रीमुख आवडींने ॥४॥
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ज्या सुखा कारणे देव वेडावला,
वैकुंठ सोडूनी संत सदनी राहिला || धृ ||
धन्य धन्य संताचे सदन
तेथे लक्ष्मी सहित शोभे नारायण || ||
नारायण नारायण नारायण लक्ष्मी नारायण नारायण नारायण
सर्व सुखाची सुखराशी, संत चरणी भक्ती मुक्ती दासी || ||
एका जनार्दनी पार नाही सुखा,म्हणोनी देव भुलले देखा || 3||
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टाळ बोले चिपळीला नाच माझ्यासंग
देवाजीच्या दारी आज रंगला अभंग
दरबारी आले रंक आणि राव
सारे एकरूप नाही भेदभाव
गाउ नाचु सारे होउनी निःसंग
जनसेवेपायी काया झिजवावी
घाव सोसुनिया मने रिझवावी
ताल देउनी हा बोलतो मृदंग
ब्रम्हानंदी देह बुडुनीया जाई
एक एक खांब वारकरी होई
कैलासाचा नाथ झाला पांडुरंग
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खेळे कान्हा यमुनेचे तटीं राखितो गोधनें घेउनी हातीं काठी ॥१॥
पांघुरला घोंगडें रत्नजडित गे माये नंदरायाचा खिल्लारी तो होय ॥२॥
गोप गोंधनें सवंगडे नानापरी दहींभात काला वांटितो शिदोरी ॥३॥
एका जनार्दनीं खेळे नानापरी वेधोनि नेलें मन नाठवे निर्धारी ॥४॥
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यमुनेच्या तीरी काल पाहिला हरी कान्हा वाजवितो बासरी ॥धृ॥
घागर घेऊनी पाणियासी जाता येतां जाता आम्हा अडविता
आमच्या शीरी घडा याने मारिला खडा याने केली आमची मस्करी ॥१॥
दही दुध घेऊनी गवळ्याच्या नारी जात होत्या मथुरे बाजारी
त्यांचा भरला घडा याने मारीला खडा याने केली आमची मस्करी ॥२॥
यशोदा धुंडले गोकुळ नगरी अवचित पाहिला राधिकेच्या घरी
राधिकेच्या घरी हरी पलंगावरी पाहून राधा झाली घाबरी ॥३॥
जनी म्हणे बा श्रीहरी भोग भोगिले बाळ ब्रह्मचारी
जनी म्हणे देवा खुप केला तुम्ही असुन ब्रह्माचारी ॥४॥
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अबीर गुलाल उधळीत रंग | नाथा घरी नाचे माझा सखा पांडुरंग ॥धृ.॥उंबरठ्यासी कैसे शिवू आम्ही जाती हीन रूप तुझे कैसे पाहू त्यात आम्ही लीन पायरीशी होऊ दंग गावूनी अभंग ॥१॥ वाळवंटी गावू आम्ही वाळवंटी नाचू चंद्रभातेच्या पाण्याने अंग अंग न्हाऊ विठ्ठलाचे नाम घेऊ होऊनी नि:संग ॥२॥ आषाढी कार्तिकी भक्तजन येती पंढरीच्या वाळवंटी संत गोळा होती चोखा म्हणे नाम घेता भक्त होती दंग ॥३॥
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दहीदुध लोणी घागर भरुनी नेऊ कशी बाजारी
बावरले मी सावरले जाऊ कशी चोरुन बाई
मथुरेच्या बाजारी ... कशी मी जाऊ मथुरेच्या बाजारी ?
नटखट भारी किस्नमुरारी टपला यमुनातीरी
करतोय खोडी घागर फोडी जाऊ कशी चोरून बाई
मथुरेच्या बाजारी ... कशी मी जाऊ मथुरेच्या बाजारी ?
नकोस फोडु कान्हा माझी घागर आज रिकामी
हसेल सारी गोकुळ नगरी होईल रं बदनामी
आज दिली बघ नंदकिशोरा हाती लाज तुझ्या रे

रितीच घागर नशीबी माझ्या, शरण तुला मी आले
देवा शरण तुला मी आले
वाट अडवून हसतो गाली वेणु ऐकुन मोहित झाले
भान हरपून रमती गोपिका, शामरंगी न्हाऊन गेले
मन भुलवी असा कान्हा झुलवी असा हा नटनागर गिरीधारी
त्याच्या संग दंगले, रास रंगले, पिरतीची रीत न्यारी
कशी मी जाऊ मथुरेच्या बाजारी ?